लखनऊ, 20 अक्टूबर 2024: प्रदेश की राजधानी लखनऊ स्थित वास्तुकला एवं योजना संकाय,डॉ ए पी जे अब्दुल कलाम प्राविधिक विश्वविद्यालय के टैगोर मार्ग परिसर में लखनऊ विकास प्राधिकरण के सहयोग से हो रहे आठ दिवसीय समकालीन मूर्तिकला शिविर के सातवें दिन सभी समकालीन मूर्तिकारों ने अपने अपने मूर्तिशिल्प को अंतिम रूप देकर शिविर को पूर्ण किया। प्रकृति विषय पर सभी कलाकार अपने भावनाओं को बखूबी पत्थर को तराश कर सुंदर सुंदर समकालीन मूर्तिशिल्प सृजित किया है।
मूर्तिकार संतों चौबे अपने कलाकृतियों कार्य शैली के बारे में बताते हैं कि मेरा काम कलात्मक दर्शन संघर्ष और अवशोषण के जटिल नृत्य के इर्द- गिर्द घूमता है, जहाँ मूर्त और अमूर्त दोनों तत्वों का अभिसरण और टकराव उनकी मंत्रमुग्ध करने वाली मूर्तियों को जन्म देता है। संतों के कला शैली मूर्त और अमूर्त तत्वों के बीच टकराव और संबंध को दर्शाती मूर्तियाँ। कृतियाँ: प्रकृति की सूक्ष्मताओं और मानव अस्तित्व की पेचीदगियों को प्रतिबिंबित करने वाले प्रतीकात्मक रूप है। उन्होंने 2014 में लखनऊ कॉलेज ऑफ आर्ट एंड क्राफ्ट से मूर्तिकला में अपनी पढ़ाई पूरी की। फिर वह दिल्ली चले गए और 2015 से अब तक गाधी स्टूडियो में काम करना शुरू कर दिया। और वह दिल्ली (शिक्षा निदेशालय, नई दिल्ली) में एक व्याख्याता के रूप में काम कर रहे हैं। "द्वंद" उनके काम का मुख्य विषय रहा है। इस शिविर में संतों प्रकृति विषय पर काम कर रहे हैं। जिसमें "कैक्टस और बादल" उनका विषय है, इस कार्य में ज्यादातर दो अलग-अलग तत्व दिखाए गए हैं। ये दोनों तत्व चरित्र में बहुत भिन्न हैं लेकिन जब हम इन तत्वों की गहराई के बारे में चर्चा करते हैं तो दोनों जुड़े हुए हैं। वह हमेशा महसूस करते हैं कि मूर्तिकला में सादगी बहुत महत्वपूर्ण है। इसलिए सरल तत्वों के माध्यम से अपनी भावनाओं को व्यक्त करने का प्रयास करें। उनके अनुसार नर और मादा विपरीत नहीं हैं, वे कहीं न कहीं एक-दूसरे के पूरक हैं। वह अपनी मूर्तियों में दो अलग-अलग विषयों का उपयोग करते हैं लेकिन कहीं न कहीं वे एक-दूसरे से संबंधित हैं। यह संतू की मूर्तियों की सुंदरता है।